आरक्षण का इतिहास ( History of reservation.)


आरक्षण का इतिहास 

आरक्षण की जब बात आती है तब हमें राष्ट्रपिता ज्योतिबा_फूले से इस बात को शुरू करना होगा। ब्रिटिश सरकार द्वारा हंटर कमीशन को जब भारत की शिक्षा की स्थिति का जायजा लेने के लिए भेजा जाता है तब हंटर_कमीशन भारत में आने के बाद ज्योतिबा फुले हंटर कमीशन को एक लिखित मेमोरेंडम पेश करते हैं ,जो शासन प्रशासन में बैठे हुए जो ब्राह्मण हैं उनसे शूद्र-अतिशूद्र लोगों को क्या परेशानी है ,इसका ब्यौरा रखते हैं। उस मेमोरेंडम में वह ब्राहम्णों के लिए कलम_कसाई यह शब्द प्रयोग करते हैं ।कुछ लोग कहते हैं कि ज्योतिबा फुले को मराठी भाषा का ठीक से ज्ञान नहीं था  एक कलम और कसाई ऐसे 2 शब्द मिलाकर एक शब्द बनाते हैं ,कलम कसाई ।कलम कसाई याने जो ब्राह्मण अपनी कलम का इस्तेमाल तलवार की तरह करते हैं ।

इस संदर्भ में एक बात जानना होगा कि 70 के दशक तक प्रशासन में बैठे हुए ब्राह्मण लिखते थे कि #Candidates_are_not_available, 1970 के बाद स्पर्धात्मक परीक्षा के माध्यम से जब हमारे लोग प्रशासन में आना शुरू हुए तब उन्होंने लिखना शुरु किया कि #Candidate_are_not_available_and_those_who_available_they_are_not_suitable  ब्राह्मण लोग अपनी कलम का तलवार की तरह कैसे इस्तेमाल करते हैं ,इसका यह उदाहरण है ।इसलिए ज्योतिबा फुले अपने मेमोरेंडम में लिखते हैं कि ब्राह्मणों की तरह शूद्र-अतिशूद्र लोगों को भी शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए ताकि हमारे लोगों के साथ न्याय हो सके और इस तरह यहां से आरक्षण का इतिहास शुरू होता है।

 #छत्रपति शाहू महाराज का क्रांतिकारी फैसला #पिछड़े_वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण 

छत्रपति शाहू महाराज जो कोल्हापुर संस्थान के राजा थे तथा ज्योतिबा फूले को मानने वाले अनुयायी थे उन्होंने 27 जुलाई 1902  को अपने जन्मदिन के अवसर पर अपने कोल्हापुर संस्थान में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 50% आरक्षण लागू किया ।जब छत्रपति शाहू महाराज ने पिछड़े वर्ग के लिए अपने संस्थान में 50% आरक्षण की घोषणा की तब सांगली से एक ब्राह्मण कोल्हापुर गया और  उसने साहु महाराज को समझाने का काम किया कि आपके इस फैसले से आपके प्रशासन में अकार्य क्षमता निर्माण होगी और इस तरह से आपका प्रशासन खतरे में पड़ जाएगा ।तब शाहू महाराज उस ब्राह्मण को जहां घोडे बंधे थे उस तबेले के पास ले जाते हैं और अपने सैनिक को आदेश देते हैं कि इन सभी घोड़ों के मुंह को जो कपड़े बंधे हैं वह खोल दिए जाएं और एक जगह सभी घोड़ों के लिए चने डाले जाएं ।सैनिकों ने शाहू महाराज के आदेश का पालन किया और सभी घोड़ों को एक साथ चने खाने के लिए छोड़ दिया। तब क्या हुआ कि जो हट्टे कट्टे घोड़े थे ,उन्होंने सारे चने खा लिए और जो बिमार और कमजोर घोड़े थे उन्हें एक भी चना नहीं मिला ।तब शाहू महाराज उस ब्राह्मण को समझाते हैं कि देखो सभी को एक साथ चना खाने के लिए छोड़ने से जो शक्तिशाली घोड़े हैं वह सभी चने हजम कर गए और कमजोर घोड़ों को कुछ भी नहीं मिला ।इसलिए मैंने सभी घोडों के मुंह में एक थैली बांधकर उसमें उनके हिस्से के चने डाल दिए हैं ताकि सभी को खाने के लिए चने मिल सके ।अगर मैं जानवरों के साथ न्याय कर सकता हूं तो मैंने इंसानों के साथ न्याय क्यों नहीं करना चाहिए ?

मैं जानवरों के बाद अब इंसानों के साथ न्याय करने के लिए 50% आरक्षण पर अमल कर रहा हूं ।खास बात यह है कि जो आरक्षण शाहू महाराज ने दिया था वह दो जातियों को छोड़ कर दिया था जिसमें एक है ब्राह्मण और दूसरी जाती है शणवी। यह दो जातियां छोड़कर बाकी सभी जातियों को 50% आरक्षण था ।जब शाहू महाराज के अपने प्रशासन में बैठे एक #ब्राह्मण ने उसका विरोध किया और शाहू महाराज को बताया कि यह युवक का  अकार्यक्षम है ।तब महाराज ने उस ब्राह्मण को पूछा कि क्या तुम कार्यक्षम हो तो उसने जवाब दिया कि हां मैं कार्यक्षम हूं।

तब महाराज ने उस ब्राह्मण को कहा कि ऐसा करो इस इस अकार्यक्षम युवक को 3 माह के अंदर कार्यक्षम बना दो ।यदि तुमने इसे कार्यक्षम नहीं बनाया तो यह सिद्ध हो जाएगा कि तुम भी  अकार्यक्षम हो तब उस लड़के से उस ब्राह्मण ने कोई काम नहीं लिया। 3 माह के बाद सर्टिफिकेट दे दिया है कि यह व्यक्ति कार्यक्षम है ।क्योंकि  कार्य क्षमता का जो मुद्दा है यह असली मुद्दा नहीं है यह एक बहाना है क्योंकि विरोध करने के लिए कोई ना कोई जायज  तरीका होना चाहिए ।इस ऐतिहासिक घटना से दो बातें सिद्ध होती है कि जो ब्राह्मण सांगली से कोल्हापुर चलकर गया था और जिस ब्राह्मण ने कार्य क्षमता को आधार बनाकर विरोध किया था यह दो ब्राह्मण आरक्षण के इतिहास में पहले खलनायक सिद्ध होते हैं तथा इतिहास में पहले नायक ज्योतिबा फुले और दूसरे नायक छत्रपति शाहूजी महाराज सिद्ध होते हैं ।यही कारण है कि महाराष्ट्र के सामाजिक जीवन में छत्रपति शाहूजी महाराज और तिलक के बीच जो संघर्ष हुआ वह संघर्ष महाराष्ट्र के सामाजिक जीवन का बहुत बड़ा अध्याय है।

जारी.....

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